सरकारी कर्मचारियों की आरएसएस की गतिविधियों में भागीदारी

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सोमवार को बजट सत्र शुरू होते ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी पर पहले से लगे प्रतिबंध को हटाने वाले सरकारी आदेश ने सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस के बीच एक नया मोर्चा खोल दिया। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के 9 जुलाई के आदेश में तीन पुराने आदेशों की याद दिलाई गई है, जिनमें सरकारी कर्मचारियों को भाजपा के वैचारिक संगठन आरएसएस के कार्यक्रमों में भाग लेने से प्रतिबंधित किया गया था। ये आदेश 30 नवंबर 1966, 25 जुलाई 1970 और 28 अक्टूबर 1980 के थे।

कांग्रेस इस मुद्दे पर संसद में जोरदार प्रदर्शन की योजना बना रही है और जोर देकर कह रही है कि देश की सभी संस्थाएं और अब सरकार आरएसएस के नियंत्रण में हैं, वहीं भाजपा ने इस आदेश का बचाव किया है। भाजपा आईटी सेल के ने सोमवार को ट्विट्टर से ट्वीट कर कहा कि दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया मूल प्रतिबंध आदेश असंवैधानिक था।

58 साल पहले 1966 में जारी असंवैधानिक आदेश, जिसमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था, मोदी सरकार ने वापस ले लिया है। मूल आदेश को पहले ही पारित नहीं किया जाना चाहिए था," मालवीय ने कहा, जबकि भाजपा ने आरएसएस को मनाने की कोशिश की है, जो पिछले कुछ समय से सत्तारूढ़ पार्टी से नाराज चल रहा है।

मालवीय ने कहा कि यह प्रतिबंध इसलिए लगाया गया क्योंकि 7 नवंबर 1966 को संसद में गोहत्या के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ था। आरएसएस-जनसंघ ने लाखों लोगों का समर्थन जुटाया और पुलिस की गोलीबारी में कई लोग मारे गए।

भाजपा नेता ने कहा, "30 नवंबर 1966 को आरएसएस-जनसंघ के प्रभाव से हिलकर इंदिरा गांधी ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके अलावा, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फरवरी 1977 में खुद आरएसएस से संपर्क किया और अपने चुनाव अभियान के लिए समर्थन के बदले में नवंबर 1966 में लगाए गए प्रतिबंध को हटाने की पेशकश की।"

भाजपा सूत्रों ने कहा कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्षों के भी आरएसएस से संबंध थे।

भाजपा नेताओं ने अकादमिक स्रोतों का हवाला देते हुए कहा कि सीतारमैया ने आरएसएस की कुछ बैठकों और कार्यक्रमों में भाग लिया था और वह पूर्व संघ प्रमुख एमएस गोलवलकर के करीबी थे। उनका कहना है कि आजादी के बाद कांग्रेस के दूसरे प्रमुख पुरुषोत्तम टंडन ने भी हिंदू पुनरुत्थानवाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की वकालत की थी, जैसा कि आरएसएस ने किया था। टंडन भी समान नागरिक संहिता और राम मंदिर के समर्थक थे और उन्होंने कभी अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया।

हालांकि डीओपीटी के आदेश का आरएसएस द्वारा अभी तक स्वागत नहीं किया गया है।

आर एस एस एवं भाजपा की कड़ी मज़बूत करने का सरकार का एक और प्रयास। दोनों में बढ़ते  तनाव के बीच आया यह आदेश।

केंद्र सरकार ने यह आदेश ऐसे समय में जारी किया है, जब कथित तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा में कुछ तनातनी की खबरें आती रही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा के असहयोगात्मक रुख के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने लोकसभा चुनाव में पर्याप्त सहयोग नहीं किया, जिसके कारण भाजपा को बहुमत से दूर रह जाना पड़ा। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी कुछ दिन पूर्व ही ऐसी टिप्पणी की थी, जिसे केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना के रूप में देखा गया था। लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता हासिल करने पर राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के नेता इंद्रेश कुमार ने भी जनता के द्वारा 'अहंकारी लोगों को सबक' सिखा दिए जाने की बात कही गई थी। उनकी यह टिप्पणी भी केंद्र सरकार के खिलाफ मानी गई थी। हालांकि बाद में उन्होंने भी अपने बयान से पल्ला झाड़ लिया था।

आपको बता दे कि इस आदेश के बाद अब संसद में बड़ा हंगामा होने के आसार है।

जिस तरह का इस समय माहौल चल रहा है, लोकसभा चुनावों में मजबूत होकर उभरा विपक्ष इस आदेश को लेकर केंद्र पर हमलावर रुख अपना सकता है। सोमवार 22 जुलाई से ही संसद का सत्र आगे बढ़ाया जाएगा, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा वर्तमान वित्त वर्ष के लिए बजट भी पेश किया जाने वाला है।

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